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कुछ धुंधला सा आइने में दिखता है कि,
जैसे सियाही अल्फाजों पर फैल गई हो।
वक्त क्या खराब हुआ मेरा कि जैसे,
पहाचाने लोग अनजाने लग रहे हो।
सोचकर डरा सा रहता हूं तुम्हारे ख़त,
लोग सरेआम पढ़ रहे हों।।
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