
तेरी ही बगिया में खिली में...
अरमानो का मोल लगाना बंद करो
दहेज़ के लिए लड़का बेचना बंद करों
सरेआम नीलामी की मौहर लगती हैं लड़के के माथे पर
और सीना तान इज्ज़त पाने खड़े हैं लड़की के द्वारे पर
बिकता हैं लड़का
शर्मिंदा क्यूँ हैं लड़की
औकात लड़के की ही दिखती हैं
बाजार में लड़की नहीं बिकती हैं
आशीर्वाद कह कर देते हैं दहेज़
क्यूँ अपने दुलार को शर्मिंदा करते हैं
चंद रुपये में तौल दिया बेटी का प्यार
क्यूँ बेटी पर माँ बाप ये वार करते हैं
दहेज़ देना भी अपराध हैं
जो देते हैं वही चाहते भी हैं
पैसो के मोल खुशियाँ ना खरीदों
जीते जी बेटियों को ना खरीदों ना बेचों
चंद पैसों के लिए जला दिया किसी के अरमानो को
ये लड़ाई हैं सबकी मारों उन दहेज़ के दीवानों को
दहेज़ एक प्रथा नहीं
हैं भीख मांगने का सामाजिक तरिका
फर्क इतना हैं बस
देने वाले की गर्दन झुकी हैं
लेने वाले की अकड़ बढ़ी हैं
समाज के तरीको ने ही बनाया हैं बेटी को पराया
दहेज़ हो या कन्या भ्रूणहत्या अपनों ने ही कहर हैं बरसाया
लड़की हूँ मैं, नहीं कोई सामान
मत बेचों मुझे, बाजार के दाम
शेयर मार्केट का मैं कोई दाम नहीं
मेरी जिन्दगी इतनी भी आम नहीं
ऊपर लिखे मेरे शब्दो में मेरे अन्दर का गुस्सा हैं जो मुझे आये दिन पढ़ने वाली ख़बरों से आता हैं जिनमे दहेज़ के कारण जला दिया या दहेज़ के कारण आत्महत्या की जैसी घटनाये होती हैं . मैं भी एक लड़की हूँ जब अपनी माँ को अपनी शादी के लिए परेशान देखती हूँ तो इस समाज पर गुस्सा आता हैं ऐसे रीतिरिवाज बनाये ही क्यूँ ? जिसमे लालच जन्म ले. हम मानते हैं रीतिरिवाज कुछ सोच कर बनाये जाते हैं पर जब वे इतना भयावह रूप लेले तो उन्हें उखाड़ कर फेंक देना चाहिए . दहेज़ प्रथा को बढ़ावा उच्च परिवार जयादा देते हैं जो अपने प्यार को आशीर्वाद को रुपए उपहार के रूप में व्यक्त करते हैं . अपने रुतबे का दिखावा करते हैं, पर वे ये नहीं जानते उनके इस दिखावे के कारण वे जाने अनजाने किसी की हत्या, किसी की आत्महत्या का कारण बनते जा रहे हैं.
दहेज़ प्रथा को रोकने के लिए युवा वर्ग को अहम् कदम उठाने की जरुरत हैं | जब लड़का एवम लड़की इसका विरोध करेंगे तब ही यह प्रथा बंद होगी। ✍
**निशु**
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