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सहज न हँसने देंगे तुमको,
छल-बल से हँसवाएँगे।
क्या आन पड़ी दिवसः की,
हमको ये बतलाएंगे।
क्या-क्या कुकर्म किए जीवनभर,
कि हँसना दूभर हो गया।
न जाने समृद्धि के लिए,
क्या -२ किए घोटाले थे।
कभी लूटा समृद्धि देश को,
तो कभी विद्या चुराई है।
कहते हैं मनाओ ,
सारे जहाँ में उदासी छाई है।
#Thoughts #poetry
#angry
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