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कैसा यह अभिशाप है!
न जाने कैसा श्राप है!
जो बैठे सोचा करता,
वह कर्ता बन क्यों न करता।
क्यों पीडाओं में ख़ुद जकड़ता,
भगवन कैसी लीला है।
क्या यह खेल जन्म-मृत्यु तक सीमित है?
जीवन के इस लीला में,
क्यों चुना मुझको तू,
मुझे ज्ञात नहीं क्यों?
अब मुझको क्या करना है?
भगवन कैसी लीला है!
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