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सरसरी निगाहों से देखता निकल गया,
आज फिर वक्त हाथों से रेत सा फिसल गया।
आज के वक्त को खुद मैं भी जाने देना चाहूँ,
पानी की तेजी से इसे स्वयं बहा देना चाहूँ।
कल वक्त रोकेंगे अपने समय पर,
जब मुस्कुरा कर मिलेंगे खुद से पलट कर।
जो मैं आज हूँ वो कल तो नहीं रहना है,
कल की तलाश में यूँ ही नहीं बहना है।
कुछ समय और चंद लम्हों की छड़ी है,
इंतज़ार खत्म बस इम्तहानों की घड़ी है।
जितना खुद से मिलना हु
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