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*रिश्तों का छलावा*
जब रिश्तों की गांठ -गाठ,
खुल जाती है तब आपस में,
दूरियां बढ जाती हैं,
अपने ही अजनबी से लगते हैं,
रिश्तों की परिभाषा बदल जाती है,
खून के रिश्तों रिश्तों में जब ,
दूरी बढ़ जाती है तो रिश्ता,
रखना मजबूरी बन जाती है,
इससे दूर रहना बेहतर है,
जब रिश्ता निभाना कमजोरी,
बन जाती है#
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