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अपने मन के विश्वास को,
कभी छोटा किया नहीं,
जो मुझ पर बीता सहा वही,
पर कभी तुमसे कुछ कहा नहीं,
चारों तरफ रहा घना अंधेरा,
फिर भी मेरे विश्वास का,
उजाला कभी कम हुआ नहीं,
अपनो से जो जख्म हमको मिला,
वो किसी के सामने हमने उकेरा नही,
हर ज़ख्म सहकर किसी के ,
सामने आह भरा नहीं
कभी छोटा किया नहीं,
जो मुझ पर बीता सहा वही,
पर कभी तुमसे कुछ कहा नहीं,
चारों तरफ रहा घना अंधेरा,
फिर भी मेरे विश्वास का,
उजाला कभी कम हुआ नहीं,
अपनो से जो जख्म हमको मिला,
वो किसी के सामने हमने उकेरा नही,
हर ज़ख्म सहकर किसी के ,
सामने आह भरा नहीं
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