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दो बेटों नेदो घर बनाया अपने हिस्से में,
निराश होकर मां पूछती मै हूं किसके हिस्से में,
बेटों की दबी जुबान देखकर मां बोली,
कितने संघर्षों से पाला उंगली पकड़ कर चलना सिखाया,
मन में कितने सुनहरे सपना पाला,
मेरे लिए एक रोटी के लिए पड़ गया ठाला,
फिर भी मैं बेसब्र नहीं हूं क्योंकि अब ,
मेरी नजर मे आता है अनाथ आश्रम का जाना।
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