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मेरे अरमान मेरे सपने,
बिखर गये तिनके बनकर,
ना कोई उम्मीद बाकी रही,
अब तो शाम ढल गयी उनपर,
एक लौ रोशनी की इन अंधेरों में दिख जाए
हसरतें जवान हो जाए सवरकर,।
कोन है जो गर्दिशो का सामना न किया हो
आग में तपकर ही तपकर कुंदन,
चमकता है निखकर
अपने मायूसी को त्याग कर अपने वजूद के लिए,
बार -बार गिरकर उठने वाला अपने मंजिल पर,
पहुंचता है अकसर।
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