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थोड़ा सा थका हूँ मगर रुका नही हूँ – हिंदी कविता
थोड़ा सा थका हूँ मगर रुका नही हूँ
ऐ ज़िन्दगी तेरी हालातों के आगे अभी झुका नही हूँ।
कांच के रिश्ते लिए फिर रहा हूँ इन पत्थरों के शहर में
ठोकरें लग रही है मगर अभी तक टूटा नहीं हूँ।
हम मिले थे शायद किसी रह गुज़र में कभी, गर याद हो तुझे
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