
Kumar VishwasPoetry1 min read
August 12, 2022
शाम की तरह हम ढलते जा रहे है, बिना किसी मंजिल के चलते जा रहे है।

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मुश्किल होगा सफर, भरोसा है खुद पर तो चलो। तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो। जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो। छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूंढ सको तो चलो।शाम की तरह हम ढलते जा रहे है
शाम की तरह हम ढलते जा रहे है,
बिना किसी मंजिल के चलते जा रहे है।
लम्हे जो सम्हाल के रखे थे जीने के लिये ,
वो खर्च किये बिना ही पिघलते जा रहे है।
धुये की तरह विखर गयी जिन्दगी मेरी हवाओ मैं,
बचे हुये लम्हे सिगरेट की तरह जलते जा रहे है।
जो मिल गया उसी का हाथ थाम लिया,
हम कपडो की तरह हमसफर बदलते जा रहे है।
एमडी अनीस कमर MD ANEES QAMAR
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