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कुछ कहो,
कुछ सुनाओ,
कुछ सुनो,
कुछ बोलो
हाँ - ना कुछ बोल ही दो।
तुम भले ही हमे कुछ न बताओ,
पर हाँ सबके पास कुछ न कुछ कहानी ज़रूर होती है ।
ये जो चुप्पि तुम्हारी है,
पर चीखें कैसी।
हाँ शांत तो मन है तुम्हारा,
पर ये रो क्यों रही है।
भले अश्क़ न बह रहे हो,
भले ही कुछ न बताना चाहते हो,
पर ये आँखें सब बयाँ कर रही है।
खुश तो रहना चाहते हो ,
पर यह एहसास क्यों न बनती है।
तुम्हारे दिल की आहटों से सुना ,
तुम्हे सुकून मिलता ही नही है ।
ज़िन्दगी तो खूबसूरत और हसीन है,
पर आपकी नज़रें नीचे क्यों गड़ी है।
खुद को समझना ज़रूर चाहते हो,
पर तुम्हारी रूह आईने से रूबरू नही है।
कुछ तो जाने होगे खुद को,
पर तुम्हारा दिल-दिमाग समझता क्यों नही है।
दुवाओं में तो सबके आने चाहते हो,
पर तु
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