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अँधेरी जिन्दगी में जब तुम्हारी रौशनी आई
हमारे ख़ुश्क होटों पर तो जैसे चाशनी आई
न जाने कब की चौपट हो चुकी थी दिल की फुलवारी
तिरे आने से गुल आए गुलों पर चाँदनी आई
किसी ने बीच रस्ते में हमारा हाथ छोड़ा था
तभी हमको बचाने हाथ में ये लेखनी आई
अभी उठकर के देखा फेसबुक पर तेरा मेसेज था
ये सर्दी की सुबह में धूप जैसे गुनगुनी आई
कि तेरी याद भी तेरी तरह से रँग बदलती है
कभी नीली, गुलाबी, या कभी तो बैगनी आई
तलाशे जा रहे थे जुर्म के मुजरिम अदालत में
तभी एक लाश महफ़िल में कहीं से अनमनी आई
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