Share1 Bookmarks 46337 Reads2 Likes
ये किस मुहाने खड़ा मैं
जहाँ न जाने का मार्ग है
न निकास का द्वार है पर
जाने को हैै पग आतुर
विचित्र मनोभावोंं की भूमि पर पड़ा मैैं निर्विकार
शून्य सी जड़ता का
हो रहा संचार
स्वयं में ही बिखरा हूँ
दो पाटों के बीच
दो धुरी के बीच
नित्य स
जहाँ न जाने का मार्ग है
न निकास का द्वार है पर
जाने को हैै पग आतुर
विचित्र मनोभावोंं की भूमि पर पड़ा मैैं निर्विकार
शून्य सी जड़ता का
हो रहा संचार
स्वयं में ही बिखरा हूँ
दो पाटों के बीच
दो धुरी के बीच
नित्य स
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments