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एक रहस्मय दुनियाँ का ख्याल मन मे पाले हुए
घर से निकला था मैं,चेहरे पर नकाब डाले हुए
मरते वक़्त भी दूरी गवारा ना की उसने मुझसे
हाथ थामे रहा आखिर तक,पास मे बिठाले हुए
इस ख्याल से दर पर मेरे आया था हाकिमे शहर
बहुत वक़्त
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