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दबी हुई हैं कई तहरीरें हमारी बस्तर के थानों मे
लाशें मांग रही हैं इंसाफ गली सड़ी बयाबानों मे
आदिवासी हैं हम सदियों से बाशिंदे हैं जंगल के
फुर्सत मिले तो कभी खंगालना हमे दास्तानों मे
न हाकिम ने सुनी,न सुनी जमाने ने,और तो और
उंगली देकर बैठा रहा कानून भी अपने कानों मे
एक लौं को तरस रहें हैं सदि
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