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बहुत खलता है जब छोड़ना पड़ता है

मारूफ आलममारूफ आलम November 13, 2021
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बहुत खलता है जब छोडना पड़ता है

अपना घर अपना आंगन 

भले ही हो वो शहर मे,या गांव मे

धूप मे या घने जंगल की छांव मे

पक्का पलस्तर चढ़ा हुआ

या फिर कच्चा,टांटर से जड़ा हुआ

गौबर मिट्टी से मढ़ा हुआ

बहुत खलता है जब छोड़ना पड़ता है

अपना घर अपना आंगन

तब और भी ज्यादा खलता है ऐ दोस्त

कि जब तुम्हे कोई जबरदस्ती निकाले

तुम्हारे निवासों से

और ये बताऐ भी ना क्यों निकाले गए तुम 

अपने वासों से

बस जारी करके फरमान ये कहा जाऐ 

छोड़ दो ये जंगल,और निकल जाओ

कट जाओ जड़ों से अपनी,जमाने के साथ बदल जाओ

बहुत खलता है जब छोड़ना पड़ता है

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