
Share0 Bookmarks 33 Reads0 Likes
कभी तो मौज बन ए नाज़नीन,
मिलकर किनारों से इतमीनान होगा।
कर कभी तो यकीं मेरा,
कब भला हर तूफां के मंसूबों मैं इंतिकाम होगा।।
गर हो यकीं तो कर इंतजार मेरा,
तेरा हर साहिल इस माझी की कश्ती का मुकाम होगा।
और जब जब दूर किसी पनघट पर छलकेगी तेरी गगरी,
हर उन किनारों पर बेगाने की बांसुरी का पैग़ाम होगा।।
कभी तो गुल खिला ए नाज़नीन,
खिलकर बहारों में इतमीनान होगा।
कर कभी तो यकीं मेरा,
कब भला हर तूफां के मंसूबों मैं इंतिकाम होगा।।
गर हो यकीं तो कर ऐतबार मेरा,
तेरे हर गुल पर इस भवरे की धुन का फरमान होगा।
और जब जब दूर कीसी वादी में मेहकेगी तेरी खुसबू,
हरे उस गुलशन का तेरा ये आशिक गुलफाम होगा।।
- मानवेन्द्र सिंह राना
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments