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कभी तो मौज बन ए नाज़नीन,
मिलकर किनारों से इतमीनान होगा।
कर कभी तो यकीं मेरा,
कब भला हर तूफां के मंसूबों मैं इंतिकाम होगा।।
गर हो यकीं तो कर इंतजार मेरा,
तेरा हर साहिल इस माझी की कश्ती का मुकाम होगा।
और जब जब दूर किसी पनघट पर छलकेगी तेरी गगरी,
हर उन किनारों पर बेगाने की बांसुरी का पैग़ाम होगा।।
कभी
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