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अभी तुम तड़प रहे हो शायद,
खुद में झुलस रहे हो
आराम ही ढूंढ रहे हो ना?
कम हो जायेगी ये चुभन भी
थोड़ी हवा चलते ही।
अभी शायद तुम यकीन ना करो
मगर ये सामने जो घुप्प अंधेरा है
दरअसल हरे बाग हैं
फिर से दिखाई देंगे
सुबह होते ही।
कुहासा भी बरस जाएगा
हल्की सी गर्मी से
अंदर ही अंदर,
और फिर से
मन करेगा मुस्कुराने का।
हिम्मत रखने तुमसे नहीं कहूंगा मैं
वरना सुबह का इंतजार ही करते रहोगे
क्या पता सूरज भूल बैठा हो इधर की राह
या उलझ गया हो किसी अंधेरी गली में।
मैं कहूंगा तुमसे बर्दास्त करने
क्योंकि अगर हल्की सी रोशनी भी अगर इधर आ गई
तो तुम्हारी मुस्कुराहट भी साथ लाएगी।
और इससे पहले ही अगर तुम मर गए
पछताओगे बाकी की जिंदगी।
मरना मत मेरे दोस्त!
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