
#औरत_एककिताब
औरत एक किताब सी तो है
बस तुम्हें उसे पढ़ना आया ही नही
कोशिश करते, तो रंग बिरंगे चित्र भी दिखते तुम्हें
पर तुम्हें भीतर के पन्ने पलटना आया ही नही
आता भी कैसे!!!!!
कोई डिग्री हासिल थोड़ी न करनी थी तुम्हे
जो घण्टों तक दिमाग लगाकर पढ़ते
वो तो एक पल में ही सुलझने वाली पहेली है
बस तुम्हें वक़्त उसके नाम करना आया ही नही
तुम्हें मीठा पसन्द है या तीख़ा
तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे लिए उसने क्या कुछ नही सीखा
तुम्हारे तकिये के नर्म गिलाफ़ से लेकर
तुम्हारे जूतों की चमक तक
सबकुछ उसने ही तो ध्यान रखा
मगर घर लौटते वक़्त उसके लिए वो खट्टी मीठी इमली लाना
तुम्हारे ख़्याल में कभी आया ही नही....अफ़सोस...
उसकी एक भी फरमाइश ने तुम्हारी जरूरत की लिस्ट में
कभी नम्बर पाया ही नही
तुम्हारे दोस्तों और रिश्तेदारों संग बुनी तुम्हारी यादें
वो हर बार सहेजती है
उसके अंदर चाहे मायके का ग़म हो या फ़िक्र ,,मगर
चेहरे पर सिर्फ मुस्कान बिखेरती है
तुम्हारी जीत पर दुआएं माँगती है तुम्हारे दर्द बाँट लेती है
पर उसकी दुःखती रग को शायद तुमने कभी सहलाया ही नही
सच बताओ न....
क्या एक बार भी तुमने बिना जरूरत के उसे बुलाया कि नही!!!
सच कहो न...
क्या उस मोम की गुड़िया के लिए कभी तुम्हारा दिल भर आया कि नही!!!!
या वो हमेशा एक किताब ही रही
बस तुम्हे पढ़ना आया ही नही
©मनप्रीत मखीजा
#कविता_दिवस
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments