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#औरत_एककिताब
औरत एक किताब सी तो है
बस तुम्हें उसे पढ़ना आया ही नही
कोशिश करते, तो रंग बिरंगे चित्र भी दिखते तुम्हें
पर तुम्हें भीतर के पन्ने पलटना आया ही नही
आता भी कैसे!!!!!
कोई डिग्री हासिल थोड़ी न करनी थी तुम्हे
जो घण्टों तक दिमाग लगाकर पढ़ते
वो तो एक पल में ही सुलझने वाली पहेली है
बस तुम्हें वक़्त उसके नाम करना आया ही नही
तुम्हें मीठा पसन्द है या तीख़ा
तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे लिए उसने क्या कुछ नही सीखा
तुम्हारे तकिये के नर्म गिलाफ़ से लेकर
तुम्हारे जूतों की चमक तक
सबकुछ उसने ही तो ध्यान रखा
मगर घर लौटते वक़्त उसके लिए वो खट्टी मीठी इमली लाना
तुम्हारे ख़्याल में कभी आया ही नही....अफ़सोस...
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