
Share0 Bookmarks 360 Reads1 Likes
इन सूखे दरख्त की छांव में
अब कोई पंथी ना रुकता
इन तरुवर की डालो पर
पंछी भी कलरव ना करता
हर पथिक को शीतल छाया दी
जब थका हुआ सा वह लगता
जो दौड़ा-दौड़ा आता था
वह धूप और बारिश से बचता
हरियाली अपनी खोते ही
अपनों में गैरों सा दिखता
अब कोई पंथी ना रुकता
इन तरुवर की डालो पर
पंछी भी कलरव ना करता
हर पथिक को शीतल छाया दी
जब थका हुआ सा वह लगता
जो दौड़ा-दौड़ा आता था
वह धूप और बारिश से बचता
हरियाली अपनी खोते ही
अपनों में गैरों सा दिखता
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments