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सभी कहते तो यहाँ अपने मगर
रिश्तो में वो अपनापन नजर नहीं आता
बचाता था जो हमें हर मुसीबतो से
अब वो फरिश्ता भी नजर नहीं आता
अब तो आदत सी बन गई है
सबसे मुस्कुराकर मिलने की
मैने देखा है बड़े करीब से
अब कोई अंदर से हँसता नजर नहीं आता
यहां दर्द सब ने छुपा रखा है
बड़ी खामोशी बड़े सलीके. से
लोग रो लेते हैं तनहाई में
अब गले मिलकर कोई रोता नजर नहीं आता
पंछियों को भी पता चल गया है
इंसानों की फितरत का
तभी कोई पंछी छतों पर
अब दाना चुगता नजर नहीं आता ।।
मनोज प्रवीण
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