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फुर्सत जो मिले दुनियादारी से,
प्रभु दरबार तुम्हारे आ जाऊं।
चरणों में सब कुछ अर्पण करके,
इस जीवन को धन्य बना पाऊं।
मैं आता कैसे रघुराई,
मेरी कुछ मजबूरी है।
जब दर्शन मन करना च
प्रभु दरबार तुम्हारे आ जाऊं।
चरणों में सब कुछ अर्पण करके,
इस जीवन को धन्य बना पाऊं।
मैं आता कैसे रघुराई,
मेरी कुछ मजबूरी है।
जब दर्शन मन करना च
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