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गाँवो और शहरों में केवल
इतना सा अंतर होता है
हँसता है जीवन गाँवो में
शहरों में घुट-घुट रोता है
गाँवो के गली मोहल्लों के
सब की सब खबरें रखते हैं
शहरों में सामने वालों से
हम मीलो दूरी रखते हैं
दोनों जगहों के सुख दुख में
अपनों का अंतर होता है
हँसता है जीवन गाँवों में
शहरों में घुट-घुट रोता है
गाँवो में बड़े मकान नहीं
पर दिल के बड़े ये होते हैं
शहरों में है महलों वाले
दिल इनके छोटे होते है
झूठे रौब दिखावे में वो
सौम्य सरलता खोता है
हँसता है जीवन गाँवो में
शहरों में घुट-घुट रोता है
शहरों में कोई परिवार नहीं
अपने से मतलब होता है
रिश्ते नातों की कद्र नहीं
पैसा ही सब कुछ होता है
कोई थक हार कर सो जाता
कोई गोली खाकर सोता है
हँसता है जीवन गाँवो में
शहरों में घुट- घुट रोता है
मनोज प्रवीण
इतना सा अंतर होता है
हँसता है जीवन गाँवो में
शहरों में घुट-घुट रोता है
गाँवो के गली मोहल्लों के
सब की सब खबरें रखते हैं
शहरों में सामने वालों से
हम मीलो दूरी रखते हैं
दोनों जगहों के सुख दुख में
अपनों का अंतर होता है
हँसता है जीवन गाँवों में
शहरों में घुट-घुट रोता है
गाँवो में बड़े मकान नहीं
पर दिल के बड़े ये होते हैं
शहरों में है महलों वाले
दिल इनके छोटे होते है
झूठे रौब दिखावे में वो
सौम्य सरलता खोता है
हँसता है जीवन गाँवो में
शहरों में घुट-घुट रोता है
शहरों में कोई परिवार नहीं
अपने से मतलब होता है
रिश्ते नातों की कद्र नहीं
पैसा ही सब कुछ होता है
कोई थक हार कर सो जाता
कोई गोली खाकर सोता है
हँसता है जीवन गाँवो में
शहरों में घुट- घुट रोता है
मनोज प्रवीण
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