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जेठ की अलसाई दोपहर में
घंटों यूँ ही दालान में बैठना
सब से छिपकर सखियों के संग
प्रियतम की ढेरों बातें करना
आज भी रोमांचित होता है मन
पलटूँ जब जीवन का वो पन्ना ।
मं शर्मा (रज़ा)
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