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मैं धरा हूँ
तपती हूँ
सुलगती हूँ
सूरज का तेज सहती हूँ
मैं धरा हूँ
डूबती हूँ
बहती हूँ
बादलों की बौछारें झेलती हूँ
धरती हूँ
सब सहती हूँ
बेवजह बिन इजाजत
प्रचंड प्रहारों को झेलती हूँ ।
मं शर्मा (रज़ा)
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