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माँआँगन में सुखाती
अनाज के दाने
मुंडेरों पे पंछी
बनाते थे ठिकाने
कहाँ अब वो आँगन
कहाँ की मुंडेरें
यादों में बचरहे हैं
बचपन के सपने सुहाने।
मं शर्मा (रज़ा)
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