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कितनी सूनी सूनी हो गईं
मेरे गाँव की ये गलियां
गिल्ली डंडा लुक्का छुप्पी
दिनभर खेली बना टोलियां
बचपन गया सब ले गया
छोड़ पीछे खाली गलियां
ना अब पहली सी रौनक है
ना पहली सी वो गलियां ।
मं शर्मा (रज़ा)
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