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जिंदगी है सफर चले जा रहे हैं
कहाँ से चले थे याद नहीं
मंजिल पर भी पहुँचना है मगर
मंजिल कहाँ है याद नहीं
इम्तिहानों से उम्रभर गुज़रते रहे
नतीजे क्या रहे याद नहीं
सज़ाएं भी झेलीं अपने किए की
ख़ता क्या थी अपनी याद नहीं।
मं शर्मा(रज़ा)
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