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जिंदगी रूकती नहीं
कभी व्यवधानों से
नित नये रूप धरती है
नए नए परिधानों से
कैसे कैसे राज़ छिपे हैं
नित उगते किरदारों में
क्या खूब लगती है जिंदगी
नए नए अवतारों में ।
मं शर्मा (रज़ा)
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