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तन्हाई के कोलाहल का
सूनेपन के लम्हों का
मौन शब्दों की बातों का
बिना मिले मुलाकातों का
क्या कोई औचित्य नहीं है
जीवन इतना व्यर्थ नहीं है
साथ छोड़ते
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तन्हाई के कोलाहल का
सूनेपन के लम्हों का
मौन शब्दों की बातों का
बिना मिले मुलाकातों का
क्या कोई औचित्य नहीं है
जीवन इतना व्यर्थ नहीं है
साथ छोड़ते
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