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खोखले रिवाज़ों से

दरकती बुनियादों से

आहत हो रहा हूँ

थोपी गई मान्यताओं से


धूमिल आशाओं से

गुमराह दिशाओं से

भ्रमित हो रहा हूँ

अनगिनत कुंठाओं से


जीवन के औचित्य से

सुख दुख के वैमनस्य से

बहिष्कृत हो रहा हूँ

जीने की संभावनाओं से ।


मं शर्मा (रज़ा)

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