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तू एक विशाल वृक्ष घना सा

मैं नाजुक कोमल वल्लरी हूँ

जब तक लिपटी हूँ तेरे तन से

मैं फलती फूलती सुरक्षित हूँ

मत करना मुझे खुद से जुदा

मैं तुझ पर ही तो आश्रित हूँ।


मं शर्मा( रज़ा)

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