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जीवन की शाम है

सफर तमाम है

मुझ बिन कैसे रहोगी

मन में तूफान है


किसके शानों पर

सिर रखोगी

किस तरह मेरी

कमी सह लोगी


जीवन बड़ा

कठोर जुल्मी है

तू इससे

वाकिफ नहीं है ।



मं शर्मा( रज़ा)

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