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ना ख्वाबों में कोई आए
ना नींदें हीं अब छकाती
ज़ख्म भर गए हैं शायद
अब कोई याद नहीं सताती
उसको याद कर कर के
मन ही मन खुश होता हूँ
उसकी याद नहीं आती
मैं खुद से रोज़ कहता हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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