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कतरा कतरा धूप को
तरस रहा था आँगन
बादलों की ओट से
सूरज हो रहा है रोशन
जीवन के कोलाहल से
अब चहक उठेगा आँगन
गलियों में ऊधम करने
निकल पड़ेगा बचपन ।
मं शर्मा (रज़ा)
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कतरा कतरा धूप को
तरस रहा था आँगन
बादलों की ओट से
सूरज हो रहा है रोशन
जीवन के कोलाहल से
अब चहक उठेगा आँगन
गलियों में ऊधम करने
निकल पड़ेगा बचपन ।
मं शर्मा (रज़ा)
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