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आज फिर मौसम उदास था
आज फिर सीली हवा चली
फिर यादें मुझे छू कर गुज़री
आज फिर तुम्हारी कमी खली
आँखे कब से रीती पड़ी थीं
आज फिर थोड़ी नम मिलीं
तन्हाई जागती रही संग मेरे
आज फिर रात काटे न कटी ।
मं शर्मा (रज़ा)
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