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काँटें यूँ भी बहुत थे
बिछाने की जरूरत न थी
दुश्मन रहे सलामत
तुम्हारी कमी न थी।
मं शर्मा (रज़ा)
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बिछाने की जरूरत न थी
दुश्मन रहे सलामत
तुम्हारी कमी न थी।
मं शर्मा (रज़ा)
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