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सूरज जब थकने लगे

आसमां झुकने लगे

तुम चले आना जब

साँझ भी ढलने लगे


लहरें शांत होने लगें

पंछी घर लौटने लगें

तुम चले आना जब

मौन सा पसरने लगे


आँख बोझिल होने लगे

आस डगमगाने लगे

तुम चले आना जब

सब्र का बाँध टूटने लगे ।


मं शर्मा (रज़ा)

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