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मैं जिस्म तू प्राण मेरा
करता है मुझमें बसेरा
मेरा होना काफी नहीं
है जरूरी तेरा भी होना
तू आदि तू ही अनंत है
मैं तेरे हाथों का खिलौना
तेरे और ठिकाने होंगे
बिन तेरे मैं खाली कोना।
मं शर्मा (रज़ा)
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