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मैं स्त्री हूँ तो ही
तुम पुरूष हो
मैं सतत निरंतर
तुम्हारे अंग संग हूँ
तुम्हारी नींव में
मैं ही मैं हूँ
तुम्हारे वजूद का
एकमात्र स्तंभ हूँ
मेरा समर्पण
तुम्हारी जीत है
तुम्हारे अस्तित्व का
मैं ही दंभ हूँ ।
मं शर्मा (रज़ा)
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