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कैसी मुहब्बत
कैसा जहां
नीयत में दग़ा
तीखी जुबाँ
तिरछी नज़र
तल्ख बयाँ
वजूद तेरा
अंधा कुआँ
दम घोट रहा
नफरत का धुआँ।
मं शर्मा( रज़ा)
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कैसी मुहब्बत
कैसा जहां
नीयत में दग़ा
तीखी जुबाँ
तिरछी नज़र
तल्ख बयाँ
वजूद तेरा
अंधा कुआँ
दम घोट रहा
नफरत का धुआँ।
मं शर्मा( रज़ा)
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