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बिन राधा के प्रीत अधूरी
बिन बाँसुरी तान अधूरी
सृष्टि का अस्तित्व प्रेम है
प्रेम ही है सृष्टि की धुरी
सृष्टि का आधार प्रेम है
सृष्टि का श्रंगार प्रेम है
तू भी सृष्टि से प्रेम कर
सृष्टि का स्वभाव प्रेम है।
मं शर्मा (रज़ा)
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