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आस के दरिया में डूबा कोई
दर्द की फसल सींचता होगा
चौखट पे खड़े हो सुबहोशाम
सूनी राहों को देखता होगा
शीत पवन की मीठी छुअन में
प्रियवर का स्पर्श ढूंढता होगा।
मं शर्मा (रज़ा)
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आस के दरिया में डूबा कोई
दर्द की फसल सींचता होगा
चौखट पे खड़े हो सुबहोशाम
सूनी राहों को देखता होगा
शीत पवन की मीठी छुअन में
प्रियवर का स्पर्श ढूंढता होगा।
मं शर्मा (रज़ा)
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