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टंगे टंगे जब बादल थक जाते
मैं खटते खटते ढल जाता हूँ
घर की छत पर हौले से उतरी
शीतल शाम पा जी जाता हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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टंगे टंगे जब बादल थक जाते
मैं खटते खटते ढल जाता हूँ
घर की छत पर हौले से उतरी
शीतल शाम पा जी जाता हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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