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माँ को बिलखता छोड़कर
पिता से मुँह फेर कर
भाईओं के हक छीन कर
मैं शिखर पर पहुँच गया हूँ
सब कुछ पीछे छोड़छाड़ कर
घर आँगन बुलाए तो क्या
माँ चौखट को निहारे तो क्या
पिता की कोरें भीगें तो क्या
मैं कल को भूल भाल कर
आज शिखर पर आ पहुँचा हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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