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साथ साथ चले मेरे
हाथ कभी न आए मेरे
पल पल घेरें मुझे
बढ़ते हुए साये घनेरे
सिमटता जा रहा हूँ
खुद से ही छुप रहा हूँ
परछाईयों से मिलकर भी
तन्हा ही जी रहा हूँ।
मं शर्मा( रज़ा)
#स्वरचित
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