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सरस सावन की
उठती उमंग
हर्षित उर संग
झूमे हैं तन
चंचल चपल
बह रही पवन
गरजन लगे
मेघ सघन
बरसे घन
भीगे तन मन
विरहा के मारे
करते मिलन।
मं शर्मा (रज़ा)
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सरस सावन की
उठती उमंग
हर्षित उर संग
झूमे हैं तन
चंचल चपल
बह रही पवन
गरजन लगे
मेघ सघन
बरसे घन
भीगे तन मन
विरहा के मारे
करते मिलन।
मं शर्मा (रज़ा)
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