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कानों में कुछ कह गईं
मौसम की सरगोशियां
होश किसे है समझे जो
छाई हुई हैं मदहोशियां
फिज़ाओं में सुरमई ख्वाब
अपनी ताबीर ढूँढ रहे
हवाओं के भीगे लिबास
मीठी सी सिहरन बिखेर रहे।
मं शर्मा (रज़ा)
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