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आरंभ से अंत तक

कर्म से प्रारब्ध तक

सृष्टि ही सबका सार है

शेष सब निराधार है


परिवर्तन अटल सत्य

नश्वरता आधार है

सृजन में संहार निहित

विध्वंस ही आगाज़ है।



मं शर्मा रज़ा)

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